Wednesday, May 6, 2009

BREAKING WITH ANGER

Sunday, May 3, 2009

Saturday, May 2, 2009

Friday, May 1, 2009



बाबा आ जाओ ...बाबा जाओ....
मुझे दिखाओ वो घर मेरे अंतर में रहते जहाँ
तुम सदा
मुस्कान बन मन अन्तर में
बाबा जाओ ...बाबा जाओ....
कभी कभी ही मैं देख पाता
मैं देख पाता रोशन उजाला
किरणों की डोर के संग -संग मैं
जाता उतर गहरे अन्तर मैं
बाबा जाओ ...बाबा जाओ....
जब जब मैं देखूं गहरी आँखें
अनन्त का अंश मैं बन जाता
गहरे गहरे जाता उतर मैं
तुझको संग पाता अन्तर मैं
बाबा जाओ ...बाबा जाओ....


कौन है भीतर
कभी कोई तो कभी कोई चेहरा
लगता है अपना-अपना सा
लेकिन बदले बदले रंगों के संग
जब जब देखता हूँ
रंगों में अपने अंतर की खूबसूरती
बिखर जाता है चारों तरफ़
बस अपनापन ही अपनापन
यही तो ईश्वर का रूप है
सच मुच हमारे अंतर में बसा....