Saturday, November 19, 2011

कुछ पुरानी ग़ज़ले

बंद कमरा है मेरा दिल कोई आवाज़ नहीं
दिल तो गाने को मचलता पर कोई साज़ नहीं

बंद दरवाज़ा नहीं कोई है मेरे घर का
फिर भी ना जाने कोई आने को तैयार नहीं

किसको जाकर के सुनाऊ राजे दिल अपने
कोई भी शख्स मुझे सुनने को तैयार नहीं

दावा करते हैं वो हमसे मुलाकातों का
मिलते हैं रोज़ मगर लब से कोई बात नहीं

हमने सोचा था मचा देगें धूम महफ़िल में
कैसी महफ़िल है शुरू भरता कोई ज़ाम नहीं

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