Saturday, June 14, 2014


फिर कुछ राह नज़र आई
फिर कुछ चाह नज़र आई
 लगता है बदला है मौसम
पिघलती आह नज़र आई
 जज़्बाते-अल्फ़ाज़ यूं बोले
 हर बात स्याह नज़र आई
 इश्क़े- इबादत से लबरेज
 बात क्यूँ गुनाह नज़र आई
है यकीं मुझे छू लूँगा रूह
 आज हमराह नज़र आई

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