Saturday, June 14, 2014


फिर कुछ राह नज़र आई
फिर कुछ चाह नज़र आई
 लगता है बदला है मौसम
पिघलती आह नज़र आई
 जज़्बाते-अल्फ़ाज़ यूं बोले
 हर बात स्याह नज़र आई
 इश्क़े- इबादत से लबरेज
 बात क्यूँ गुनाह नज़र आई
है यकीं मुझे छू लूँगा रूह
 आज हमराह नज़र आई

Tuesday, October 1, 2013

नयी दस्तकों में है नयी छटपटाहट सुन रहा है मन फिर से नई आहट खिल रही है उमंगे तर्रन्नुम शुरू हो रही है फिर से जीने की चाहत अब हवाओं से कहे मन सुन ज़रा तू ही मेरी बन ज़ुबा पढ़ के चाहत बोले जो भी आँख बोले दिल की बात बे-ज़ुबान सारे रहे अलफाज-ए-चाहत एक-सी दिल में तड़प हमारे- तुम्हारे एक-सी चाहत लबों पे,एक-सी ही मुस्कुराहट अब ना ठहरो तुम कहीं और मिटा दो दूरियाँ अब चले आओ कसम, मिले दिल को राहत

Saturday, November 19, 2011

कुछ पुरानी ग़ज़ले

बंद कमरा है मेरा दिल कोई आवाज़ नहीं
दिल तो गाने को मचलता पर कोई साज़ नहीं

बंद दरवाज़ा नहीं कोई है मेरे घर का
फिर भी ना जाने कोई आने को तैयार नहीं

किसको जाकर के सुनाऊ राजे दिल अपने
कोई भी शख्स मुझे सुनने को तैयार नहीं

दावा करते हैं वो हमसे मुलाकातों का
मिलते हैं रोज़ मगर लब से कोई बात नहीं

हमने सोचा था मचा देगें धूम महफ़िल में
कैसी महफ़िल है शुरू भरता कोई ज़ाम नहीं

Saturday, June 12, 2010

Wednesday, May 26, 2010

मत कोसो अंधेरों को


मत कोसो अंधेरों को
वो जो देखती है अंधेरों को
कौन सी हैं आँखें वो ...जो दिखाती है राह अंधेरों में
कुछ नहीं दिख रहा ... अक्सर कहते हैं हम
दृश्य बस अँधेरा ही अँधेरा ..
कैसा भ्रम है ये
दिख रहा है अँधेरा..
फिर भी कहते हैं हम ...कुछ नहीं दिख रहा
सच तो ये है
अँधेरा ही दिखाता है हमें वो सब
जो हम नहीं देखना चाहतें हैं उजालों में
....खोलकर अपना मन ..पूरी तरह
सब कुछ नज़र आता है साफ़
हमारा अपना अँधेरा अंतर का
अलग अलग ढेर ...
अलग अलग नाम...
अलग अलग आवरण...
ओढ़े हुवे छिपाने के लिए
अपना सत्य...जो डराता है हर पल
आँखे मूंदुं तो डर लगता है खुद से..
आँखे खोलू तो डर लगता है जग से...
ऐसे में..अँधेरा ही लगता है सच्चा ..साथी..दोस्त..
जो खोलता है हमारी आँखे...दिखाता है हमारा सच..
खोलता है वो राह..
जहाँ साफ़ नज़र आता है
सच साथ साथ चलता हुआ
अँधेरा कभी नहीं दिखाता है राह उंगली पकड़ कर
अँधेरा जगाता है हमारी अंतर्शक्ति
हम चलते ..हैं ...दौड़ते हैं स्वयं से
खोलते हैं प्रकाश द्वार ..
सचमुच अन्धेरें हैं हमारे दोस्त..
जब जब आये हमारे साथ..
दिखाते हैं कुछ नया...हमसे ही हमारे अंतर में ..
जिससे होतें हैं हम अनभिज्ञ ..
गौर से देखो नया... अपना ही अंतर ..
वो ही तो प्रकाश है..
जो जन्मा है अंधेरों के गर्भ से
सचमुच अन्धेरें ही हैं ...
जीवन का सत्य दर्शन..शाश्वत दर्शन ...
अँधेरे देते हैं जन्म प्रकाश को
अपना अस्तित्व खो कर
अन्धेरें ही खोलते हैं
चैतन्य शक्ति द्वार...अंतर मन में प्रकाश के..

Saturday, April 3, 2010

I don't know how to get into this world of blogs...

Is it all that we liberate ourselves from some wonderful thougth considering something unique....freely..

may be we are trying get closer to the core of existence rather co-existence i.e. Pure love...

Why do we look for the purity?

What exactly the purity means..is it completeness...total dedication...100% involvement...something of that kind of feeling I experiance whenever I 'm asked for understanding the PURITY. Somehow it clicks from the sound of the word itself ..PURI..Purnata...yeah...that's ark of existence..be 100% of what you are..where you're.. you will get your desires fulfilled 100% only when you complete the course of becoming 100% for the desired level.

It is very easy for all of us ..just open ..be yourself 100% all the way. Your pure expression shall always keep you close with self & everyone. You are world within your self & everyone therein is part of you.

Monday, September 7, 2009